Monday, October 30, 2006

साहित्यकार बनाने की एजेन्सी

साहित्यकार बनाने की एजेन्सी

मित्रों.............
यह एक्कीसवीं शदी की साहित्यिक संस्था है,
साहित्यकार बनाना अपना धंधा है
हम सबका हित चाहते हैं,
अत: रातों-रात साहित्यकार बनाते है।

कविता कहानी लिखते, लिखवाते हैं,
पत्र पत्रिकाओं में छापते-छपवाते हैं।
बोलिए क्या बनना है?
कवि बनना है, कथाकार बनना है?
चाहें तो उप्न्यास्कार भी बन सकते हैं,
आजकल थ्री-इन-वन का जमाना है ।

संगोष्ठियों मे आपको बुलबाऍगे,
उंचा आसन दिलवाऍगे,
आपके प्रतिभा का तिल का तार बनाऍगे।

असली साहित्यकार बड़े सरल होते हैं।
आपको सम्मान देंगे,
अपने साथ पाकर फूले नहीं समाऍगे।

बिना विज्ञापन का विज्ञापन करवा देंगे।
पत्रकारों को आपका नाम रटवा देंगे।
आखिर पत्रकार भी अपना भाइ है।
यह अलग बात है कि उसकी पूछ हाई है।
साहित्यकार को, वे भी अपना मानते हैं।
बिना खाए पीए भी बहुत छापते हैं।
इतने कम खर्चे में
इतना नाम रजनीति में भी नहीं होता।
जो भी आता है, पाता ही पाता है,
कोई भी नहीं खोता।
राजनीति में रिस्क बहुत हाई है।
न कोट है न टाई है।
यहॉ सब कुछ चलेगा,
अंग्रेजी दॉ होंगे, तो भाव और बढ़ेगा।

जीते जी जयन्ती मनवा देंगे।
अभिनन्दन ग्रंथ भी छपवा देंगे।
जिस पार्टी में जाना हो,
उस नेता से लोकार्पण करवा देंगे।

लिखने वाले लिखते रह जाऍगे।
आपके लिए मंच लुटवा देंगे।
दो-चार पुरस्कार भी दिलवा देंगे।
मंत्रियों-संत्रियों से मिलवा देंगे।
राजनीति में जाने का अच्छा बहाना है।
राजनैतिक पद के लिए भी,
साहित्य में नाम कमाना है।
हिन्दी वाले हाथ मलते रह जाऍगे,
आप आगे निकल जाऍगे।

कुछ साहित्यकार खिसका किस्म का होता है।
रात-रात भर लिखता है,
जागता है, न सोता है।
लिख-लिख कर ढ़ोता है।
छपवाने को रोता है।
इनसे परहेज रखिए।
जो कहते हैं वही करिए,
वर्ना खुद तो बर्बाद है ही,
आपको भी बर्बाद करवाएगा।
जिन्दगी भर झोला ढ़ोता है,
आपसे भी ढ़ुलवाएगा।

हमलोग इनका उपयोग करते हैं।
संगोठियों में बुलवाते हैं,
अपने आयोजनों को विश्वसनीय बनाते हैं।
इनके आने से आयोजनों में रंग आता है।
नकली में असली का सुगन्ध आता है।
हम इनके भाषण से पंक्ति चुराते हैं,
आपके नाम छपवाते हैं।

बहुत हो चुका,
जो करना है जल्दी कीजिए,
समय नहीं बर्बाद कीजिए।
मंच खाली है, आबाद कीजिए।
पदाधिकारियों की कमी नहीं है।
रिटायरमेंन्ट के बाद,
इतना मान और कहीं नहीं है।
मोल भाव का वक्त नहीं है,
जो कह दिया वही सही है।
अब सब आपके उत्साह पर निर्भर करता है।
अपना क्या बिगरता है।
मेरा तो नाम चलता है,
पाकेट में संस्था है,
आप नहीं और सही,
और नहीं और सही ।।

1 comment:

Unknown said...

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